बैरी बेईमान, बागी सावधान!

प्लॉट: यह फिल्म 1970 के समय की चंबल घाटी के डाकुओं की जिंदगी पर आधारित है इसमें डाकुओं के सरदार मानसिंह और उसके साथियों की कहानी पर फिल्म बनाई गई है एक दिन वे एक शादी को लूटने जाते हैं लेकिन पुलिस वालों को पता चल जाता है और वे सभी को घेर लेते है और दोनों तरफ की लड़ाई में मानसिंह मारा जाता है इसके बाद वकील सिंह डाकुओं का सरदार बन जाता है चलते-चलते रास्तें में इंदु नाम की एक महिला मिलती है जो अपने साथ लाई हुई सोन चिड़िया को बचाने की गुहार लगाती है कि किसी तरह उसे अस्पताल पहुंचा दो| क्या वे सभी उसको अस्पताल पहुंचा पाएंगे? क्या डाकुओं की सरदार वकील सिंह के साथ एकता हो पाएगी? क्या लखना सिंह का अलग गुट बन जाएगा? यह सब जानने के लिए फिल्म देखें|
टोन और थीम: यह फिल्म एक एक्शन टोन पर आधारित है इसकी थीम टकराव और वर्चस्व है इसको बनाने का उद्देश्य यह बताना है कि चंबल की घाटी में डाकुओं का जीवन कैसा है और कैसे वे सब समाज से कट से गए हैं उनमें एकता ना होना भी एक मुद्दा है|
एक्टिंग एंड कैरक्टर्स: मान सिंह की भूमिका में मनोज बाजपेई की मेहमान भूमिका है उनका बहुत अच्छा अभिनय है फिल्म में छोटा रोल होने के बावजूद लखन की भूमिका में सुशांत सिंह राजपूत का अभिनय भी बहुत अलग तरह का है शुरू से लेकर अंत तक फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत ही छाए हुए हैं वकील सिंह के भूमिका में रणवीर शोरी ने भी बहुत ही दमदार और अलग तरह का अभिनय किया है| इंदु के रोल में भूमि पेडणेकर का भी काम अच्छा है वह हर भूमिका को बहुत ही परफेक्शन के साथ निभाती है| वीरेंद्र सिंह की भूमिका में आशुतोष राणा की भूमिका नेगेटिव और ग्रे शेड्स लिए हुए है बाकी सभी सपोर्टिंग कास्ट का काम भी अच्छा है सभी ने बुंदेली बोली का बहुत ही अच्छे से प्रयोग किया है एक अलग तरह की बोली में डायलॉग्स बोलना इतना आसान नहीं होता पर सभी ने पूरी सम्पूर्णता के साथ बोला है|
डायरेक्शन: अभिषेक चौबे के निर्देशन में हम उनकी पहले बहुत ही बढ़िया फिल्में देख चुके हैं जैसे इश्किया(2010), डेढ़ इश्क़िया(2014) और उड़ता पंजाब(2016) और उनके लेखन में द ब्लू अम्ब्रेला(2005), ओमकारा(2006), ब्लड ब्रदर्स(2007), कमीने(2009), और मटरू की बिजली का मंडोला(2013) आदि वह बहुत ही प्रतिभाशाली निर्देशक है उनकी ज्यादातर फिल्में सफल रही है और कुछ highly critically aclaimed है| यह फिल्म भी उनकी highly critically aclaimed है पर इस फिल्म में वह मात खा गए निर्देशनअच्छे से नहीं कर पाए उनका निर्देशन कमज़ोर है पर यह तो दर्शक पर निर्भर करता है कि वह फिल्म को पूरी देखना चाहेंगे या नहीं| इस तरह की फिल्म में संगीत का बहुत बड़ा हाथ होता है जो कि निर्देशक इस पर ध्यान नहीं दे पाया|
कहानी: सुदीप शर्मा और अभिषेक चौबे की कहानी 1970 के चम्बल घाटी के बैकड्रॉप पर लिखी गयी है उस समय के डाकुओं के जीवन पर बनाई गई है जो बाग़ी हो गए और आपस में ही लड़ पड़े थे|
पटकथा-संवाद: सुदीप शर्मा की पटकथा और संवाद तो फिल्म की टोन से पूरी तरह से मेल खाते है पर सबसे बड़ी कमी इसकी बुंदेली बोली के संवाद होना है जिससे दर्शक अपने आप को फिल्म से जोड़ नहीं पाते|
सिनेमैटोग्राफी: अनुज राकेश धवन ने चम्बल घाटी की लोकेशंस को बहुत ही अच्छे से इस्तेमाल किया है, पूरी फिल्म ही चम्बल घाटी के पहाड़ियों में ही फिल्मायी गई है| एरियल व्यूज दृस्य बहुत ही अच्छे से कैप्चर्ड किये गए है, कैमरा फ्रेम्स हो या एंगल्स बहुत बढिये तरीके से इस्तेमाल किए गए है|
एडिटिंग: मेघना सेन की एडिटिंग धीमी गति की है थोड़ी सी कसी हुई हो सकती थी
फिल्म थोड़ी छोटी हो सकती थी जो की लंबी है फर्स्ट हाफ में कहानी किसी मोड़ पर नहीं पहुंच पाती|
बैकग्राउंड स्कोर: बेनेडिक्ट टेलर का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की लोकेशंस और थीम के मुताबिक बहुत ही बढ़िया है|
म्यूजिक: विशाल भारद्वाज का संगीत दो-तीन गीतों का बहुत अच्छा है
रुआं रुआं (अरिजीत सिंह) की आवाज़ में बहुत ही शानदार बन पड़ा है और आप बार बार सुन सकते है,
सोनचिड़िया गीत भी रेखा भारद्वाज ने मधुर और सुरीली आवाज़ में गाया है,
सांप खावेगा गीत भी एक अलग तरह के संगीत और सुखविंदर सिंह की धांसू आवाज़ में गाया गया है|
लिरिक्स: वरुण ग्रोवर के लिखे हुए गीत भी फिल्म के टोन के हिसाब से है|
साउंड डिजाइन: कुणाल शर्मा का साउंड डिजाइन बहुत ही लाजवाब और शानदार है|
कॉस्ट्यूम डिजाइन: दिव्या और निधि गंभीर के बनाये हुए कॉस्ट्यूम डिजाइन बिलकुल डाकुओं जैसे ही
ओरिजिनल लगते है ऐसे दिखता है कि सच के डाकू फिल्म में लिए गए है|
प्रोडक्शन डिजाइन: रीता घोष का किया हुआ प्रोडक्शन डिज़ाइन भी फिल्म के थीम के मुताबिक बढ़िया है|
एक्शन: एन्टॉन मून और सुनील रॉड्रिगुएस के बहुत ही खतरनाक है और कहानी के मांग के मुताबिक बढ़िया है|
क्लाइमेक्स: क्लाइमेक्स भी ठीक ठाक है|
रेटिंग: 7/10
Flaws: हिंसात्मक फिल्म है जो कि बच्चों के साथ नहीं देखी जा सकती और
गली गलोच वाले दृश्य बहुत भरे पड़े हैं, डायलॉग भी पूरी तरह से बुंदेली बोली के है
CBFC: फिल्म में कुछ जगहों पर अपशब्द बोले गए है 3 cuts के साथ फिल्म को पास किया गया है लेकिन गालियों ऐसे ही रखा गया है और उनको नहीं काटा गया है|
65th फिल्मफेयर अवॉर्ड नॉमिनेशंस: फिल्म को 11 नॉमिनेशंस मिले थे जैसे बेस्ट फिल्म (क्रिटिक्स), बेस्ट एक्ट्रेस (क्रिटिक्स), बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर, बेस्ट स्टोरी, बेस्ट स्क्रीनप्ले, बेस्ट डायलाग, बेस्ट सिनेमेटोग्राफी, बेस्ट प्रोडक्शन डिज़ाइन, बेस्ट साउंड डिजाइन, बेस्ट एक्शन और बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन और 2 अवार्ड जीतने में कामयाब रही बेस्ट फिल्म (क्रिटिक्स) और बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन(दिव्या और निधि गंभीर)
CBFC-A Movietime: 2h25m Genre: Action Drama Backdrop: Chambal Release: 1, March, 2019
फिल्म कास्ट: मनोज बाजपेई (मेहमान भूमिका), सुशांत सिंह राजपूत, रणवीर शोरी, भूमि पेडणेकर, आशुतोष राणा और लंकेश भारद्वाज
प्रोडूसर: रोनी स्क्रूवाला, डायरेक्टर: अभिषेक चौबे, साउंड डिज़ाइन: कुणाल शर्मा, कास्टूम डिज़ाइन: दिव्या और निधि गंभीर
म्यूजिक: विशाल भारद्वाज, लिरिक्स: वरुण ग्रोवर, बैकग्राउंड स्कोर: बेनेडिक्ट टेलर, प्रोडक्शन डिज़ाइन: रीता घोष
एडिटर: मेघना सेन, सिनेमेटोग्राफी: अनुज राकेश धवन, स्टोरी: सुदीप शर्मा, अभिषेक चौबे स्क्रीनप्ले-डायलॉग्स: सुदीप शर्मा
एक्शन: एन्टॉन मून और सुनील रॉड्रिगुएस, आर्ट डायरेक्टर: मधुमिता सेन शर्मा, राजेश चौधरी
Nice 👍👍👍